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About Temple

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19 जनवरी 1982 ई. के दिन हाँसी के एतिहासिक किले से 57 दिगम्बर जैन प्रतिमायें ताम्बे के टोकने में रखी हुई बच्चों को गिल्लीडंडा खेलते हुए दिखाई दी। तीर्थकरों एवं अन्य देवी व देवताओं की इन सभी मूर्तियों को बसंत पंचमी 30 जनवरी 1982 ई. के दिन श्री दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर हाँसी में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा गया। इसके पश्चात् दस वर्ष तक ये सभी प्रतिमाएँ पुरातत्व विभाग चण्डीगढ के सरकारी म्युजियम् मे रही।

इस बीच स्थानीय दिगम्बर जैन के अथक प्रयास एवं जैन श्रमण संस्क्रत के उन्नायक दिगम्बर जैनाचार्य परम पूज्य श्री 108 धर्मभूषण जी महाराज, पूज्य कुलभुषण छुल्लक जी महाराज (वर्तमान में परम पूज्य श्री 108 धर्मभूषण जी महाराज) एवं अन्य संतों के शुभाशीष से 30 दिसम्बर 1991 ई. के दिन ये सभी उत्क्रष्ट शिल्प कलायुक्त प्राचीन प्रतीमाएँ हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमत्री के आदेश पर स्थानीय दिगम्बर जैन समाज को सोंप दी गई।

अशुभ उदय से हाँसी के श्री दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर में विराजमान किले से प्रकटी पूजनीय प्रतिमाएँ एवं श्री मन्दिर जी की सभी धातुओं से निर्मित प्रतिमाएँ दिनांक 26 अक्टूबर 2005 को रहस्यमय ढंग से चोरी हो गई थी। इन चोरी गई सभी प्रतिमाओं क हरियाणा पुलिस को अचानक मात्र 36 दिन में बरामद किया जाना, वास्तव मे अपने आपमें एक अतिशय ही कहा जायेगा। आज ये सभी प्रतिमाएँ हाँसी के पंचायती बडे मन्दिर जी में एक भव्य नवनिर्मित वेदी में विराजमान है। बडी संख्या में लोग आज इन चमत्कारी, अतिशययुक्त प्रतिमाओं के दर्शन कर मनोवांछित कामनाएं पुरी कर रहे हैं।

यह अतिशय आचार्यों एवं संतों के आर्शिवाद व श्री मन्दिर जी में विराजमान अदभुत व अतिशयकारीयुक्त भ. पार्श्वनाथ चौबीस का चमत्कार ही कहलायेगा।

इस अतिशय क्षेत्र का शिलान्यास 8 मार्च 1995 को आचार्य श्री 108 विधासागर जी महाराज की परम शिष्या आर्यिका श्री 105 दृढमति माता जी एवम 17 आर्यिका व 108 बह्मचारी व बह्मचारिणी बहनों के सानिध्य में व पं0 श्री जय कुमार जी टीकमगढ़ के कुशल निर्देशन में लाला राज कुमार जी जैन पुत्र लाला रूधनाथ सहाये जी (ज्ञाने वाले परिवार) ने जैन पैट्रोल स्पलाईंग कं0 द्वारा किया गया।

इस क्षेत्र में आचार्य श्री 108 विधासागर जी ने ‘पुण्योदय तीर्थ’ नाम देकर अपना अपार आशीर्वाद दिया।