19 जनवरी 1982 ई. के दिन हाँसी के एतिहासिक किले से 57 दिगम्बर जैन प्रतिमायें ताम्बे के टोकने में रखी हुई बच्चों को गिल्लीडंडा खेलते हुए दिखाई दी। तीर्थकरों एवं अन्य देवी व देवताओं की इन सभी मूर्तियों को बसंत पंचमी 30 जनवरी 1982 ई. के दिन श्री दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर हाँसी में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा गया। इसके पश्चात् दस वर्ष तक ये सभी प्रतिमाएँ पुरातत्व विभाग चण्डीगढ के सरकारी म्युजियम् मे रही।
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भारत-भू पर सुधारस की वर्षा करने वाले अनेक महापुरुष और संत कवि जन्म ले चुके हैं। उनकी साधना और कथनी-करनी की एकता ने सारे विश्व को ज्ञान रूपी आलोक से आलोकित किया है। इन स्थितप्रज्ञ पुरुषों ने अपनी जीवनानुभव की वाणी से त्रस्त और विघटित समाज को एक नवीन संबल प्रदान किया है। जिसने राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक और संस्कृतिक क्षेत्रों में क्रांतिक परिवर्तन किये हैं। भगवान राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, ईसा, हजरत मुहम्मदौर आध्यत्मिक साधना के शिखर पुरुष आचार्य कुन्दकुन्द, पूज्यपाद्, मुनि योगिन्दु, शंकराचार्य, संत कबीर, दादू, नानक, बनारसीदास, द्यानतराय तथा महात्मा गाँधी जैसे महामना साधकों की अपनी आत्म-साधना के बल पर स्वतंत्रता और समता के जीवन-मूल्य प्रस्तुत करके सम्पूर्ण मानवता को एक सूत्र में बाँधा है।
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पुण्योदय तीर्थ क्षेत्र लगभग 5 करोड़ की लागत से 7 एकड़ भूमि में तैयार हुआ है। इसके निर्माण में बंसी पहाड़ का पत्थर व मकराना का मार्बल इस्तेमाल किया गया है। इसे हांसी, हिसार, मकराना व भरतपुर के कुशल कारिगरों ने बनाया है। इसमें सोने व चांदी के नक्काशी का काम जयपुर के कुशल कारिगरों ने किया है।
इस मन्दिर के निर्माण में गृभ ग्रह का कार्य पूर्णतः ठोस पत्थर कार्य है , जिसमें सरिया का इस्तेमाल वास्तु की दृष्टि से नहीं किया गया है। मन्दिर का निर्माण आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के शिष्य व प्रदीप जी विधानाचार्य की देखरेख में हुआ है। मन्दिर में 9 फुट के सिंगल शिला के भगवान प्राष्र्वनाथ व 5 टन की 5 मूर्तियां अष्टधातु की विराजमान है।